जैसा कर्म वैसा फल प्रत्येक व्यक्ति कर्म करने में स्वतंत्र है। स्वतंत्र शब्द का अर्थ होता है कि वह अपनी इच्छा बुद्धि विचार संस्कार परिस्थिति आदि के आधार पर कर्म करता है। और जो जैसे कर्म करता है, उसे ईश्वर की न्याय व्यवस्था से वैसा ही फल मिलता है। ईश्वर न्यायकारी है। वह सबके कर्मों को देखता है। सदा सबका हिसाब रखता है। ठीक समय आने पर सबको कर्मों का ठीक ठीक फल देता है, न कम, और न अधिक।
ईश्वर ने कुछ मनुष्यों को भी कर्म का फल देने का अधिकार दे रखा है। जैसे घर में माता-पिता। स्कूल कॉलेज गुरुकुल आदि में अध्यापक आचार्य लोग। गांव में पंचायत। नगर में न्यायालय। और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में जो उन उन कंपनियों के बड़े अधिकारी होते हैं, उन सबको।इसी प्रकार से जो जो भी संस्थाएं काम करती हैं, वहां वहां के बड़े-बड़े अधिकारी अपने अधीनस्थ लोगों या कर्मचारियों को उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। यह सब कर्म फल व्यवस्था मनुष्यों के लिए वेदों में ईश्वर ने बताई है। यदि किसी कर्म का फल यहां ये अधिकारी लोग नहीं दे पाते, तो ऐसे कर्मों का फल ईश्वर देता है। इस जन्म में या अगले जन्म में, जब भी जिस कर्म का फल देना उचित होता है, तब ईश्वर उनके कर्मों का फल ठीक-ठीक न्याय पूर्वक देता है।
आजकल बहुत से लोग अपना भविष्य जानने को उत्सुक रहते हैं। और वे कितने ही भविष्यवक्ताओं के आगे-पीछे चक्कर लगाते हैं। वे उनसे पूछते हैं, कि "बताइए हमारा भविष्य कैसा होगा? वे भविष्यवक्ता लोग अपना भविष्य ही ठीक प्रकार से नहीं जानते, तो दूसरों को उनका भविष्य क्या बताएंगे। उनमें से अधिकांश लोग तो ईश्वर को भी ठीक प्रकार से नहीं जानते। ईश्वर की कर्म फल व्यवस्था को नहीं जानते। तो वे किसी का भविष्य क्या बता पाएंगे? इसलिए उनके आगे पीछे न घूमें।
क्योंकि आपका भविष्य तो आप स्वयं ही जानते हैं। आप जैसा कर्म करते हैं, बस वैसा ही आपका भविष्य होगा। आप अच्छा या बुरा कैसा कर्म करते हैं, इस बात को ठीक ठीक या तो ईश्वर जानता है, या आप। इसलिए अपना भविष्य जानने के लिए किसी अन्य मनुष्य के आगे पीछे चक्कर न काटें।
हां, आप अपने कर्मों का सुधार अवश्य करें। यदि आप अपना भविष्य उत्तम बनाना चाहते हैं, तो सदा बुरे कर्म करने से बचें, और अच्छे कर्म ही करें। क्योंकि कर्मों को सुधारने से ही आपका भविष्य सुधरेगा। दूसरा कोई उपाय नहीं है।
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कर्म करने पर ही फल की प्राप्ति होती है।
कर्म करने पर ही फल मिलता है, मुफ्त में कुछ नहीं मिलता। यह सर्वशक्तिमान न्यायकारी ईश्वर का नियम है। यदि आप सुख चाहते हैं, तो सर्वशक्तिमान न्यायकारी ईश्वर के इस नियम का पालन करें।
वेद आदि सत्य शास्त्र कहते हैं, कि ईश्वर की भक्ति करने से सुख मिलता है। ईश्वर की भक्ति के तीन भाग हैं। इन तीनों भागों को पूरा करने से भक्ति पूरी मानी जाती है। परन्तु यदि आप इन तीन में से किसी एक भाग का भी पालन करेंगे, तो उससे भी उतना उतना सुख मिलता है। ईश्वर भक्ति के तीन भाग ये हैं। एक तो - वेद आदि सत्य शास्त्रों को पढ़कर अपने ज्ञान को शुद्ध करने से सुख मिलता है। दूसरा - सेवा परोपकार दान दया आदि शुभ कर्मों को करने से सुख मिलता है। और तीसरा - ईश्वर की उपासना ध्यान आदि करने से सुख मिलता है। तीनों प्रकार से व्यक्ति को सुख प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए।
कुछ लोगों को इन तीनों में से किसी एक में रुचि होती है। चलो ठीक है, आज जिसका जितना स्तर है, वह वर्तमान में उसी कार्य को करे, और उससे अपना सुख बढ़ावे। जिन लोगों को अभी वेदों के ज्ञान में रुचि उत्पन्न नहीं हुई, तथा ईश्वर का ध्यान उपासना करने में भी अभी रुचि उत्पन्न नहीं हुई, तो कोई बात नहीं, तब तक वे परोपकार आदि शुभ कर्मों का आचरण करके अपने सुख को बढ़ावें। दूसरों को सुख देवें, तभी उन्हें सुख मिलेगा।" "तो दूसरों को सुख देना, यह भी ईश्वर भक्ति का एक भाग है। जब धीरे-धीरे ज्ञान और उपासना में उनकी रुचि बनेगी, तब उसे भी वे लोग कर लेंगे। तब उन कार्यों को करने से भी उनका सुख बढ़ेगा।
यदि आपकी स्थिति भी ऐसी ही हो, तो फिलहाल आप भी परोपकार आदि कर्म करते हुए ही अपना सुख बढ़ावें। दूसरों के जीवन में खुशियां उत्पन्न करें। उनका भला करें। उनको तन मन धन से यथाशक्ति सहयोग करें। इससे आपको भी ईश्वर का बहुत आशीर्वाद प्राप्त होगा, और ईश्वर आपका सुख भी बढ़ा देगा।
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