आज हम इस पोस्ट में आपको राजस्थान के लोक देवता के बारें में विस्तार से बताएगे। राजस्थान बीरों-पीरों की धरती रही है। इस धरती पर जिन लोगो ने मानव जीवन उत्थान के लिए कर्म-धर्म से कार्य किया वे महापुरूष देवता तुल्य थे तथा कालान्तर में लोक देवता के रूप में पूजित हुए। तो आइये जाने इन लोक देवताओं के बारे में।
राजस्थान के लोक देवताओं में पांच पीर महत्वपूर्ण है
1-बाबा रामदेव जी
बाबा रामदेव जी का जन्म भाद्रपक्ष शुक्ल द्वितिय (बाबे री बीज) को बाड़मेर
जिले की शिव तहसील के उडुकसमेंर गांव में 1405 ई0 को तंवर वंशीय परिवार में हुआ। बाबा
रामदेव की माता का नाम मैणादे व पिता का नाम अजमाल जी तंवर था। इसके भाई का नाम बीरमदेव
था। तथा इनके एक बहिन जिसका नाम सुगना बाई था। बाबा रामदेव जी को मुस्लिम लोग रामसा
पीर, हिन्दू कृष्ण का अवतार रूणेचा रा धणी नीले रा असवार
आदि उपनामों से जानते है। बाबा रामदेव साम्प्रदायिक सद्भावना के लोक देवता माने जाते
है। बाबा रामदेव का विवाह अमरकोट के सोडा दले सिंह की पुत्री नेतलदे के साथ हुआ था।
बाबा रामदेव ने पहला पर्चा नेतलदे को दिया था। बाबा रामदेव जी के गुरु का नाम बालीनाथ
जी था। अपने गुरु बालीनाथ के कहने पर बाबा रामदेव जी ने भैरव राक्षस का वध सातलमेर
नामक स्थान पर किया था। बाबा रामदेव जी के चमत्कारों से प्रभावित होकर मक्का से आये
पांच पीरों ने कहा मैं पीर हां और थे पीरां का पीर हो। बाबा रामदेव ने डाली बाई नामक
मेघवाल जाति की कन्या को अपनी धर्म बहिन बनाया था। डाली बाई ने बाबा रामदेव से एक दिन
पहले समाधि ली थी। बाबा रामदेव के चमत्कारों को पर्चा कहते है तथा रामदेवजी की ध्वजा
को नेजा कहते है। जिसमें पांच रंग होते है। बाबा रामदेव जी के मंदिर को देवरा कहते
है। मंदिर में आने वाले भक्तों को जातरू कहते है। बाबा रामदेव जी एक लोक कवि भी थे।
इन्होने 24 वाणियों की रचना की थी। रामदेव जी के मेघवाल जाति के भक्त रिखिये कहलाते
है। बाबा रामदेव जी के भक्तो द्वारा खाने वाली कसम आण कहलाती है। रतना रायका, लखी बंजारा ये रामदेव बाबा के प्रमुख भक्त हुऐ थे।
जैसलमेर जिले में रूणेचा/रामदेवरा में बाबा रामदेव जी की समाधि स्थल है। इसे रामसरोवर
पाल भी कहते है। यहां भाद्रपक्ष शुक्ल द्वितिय एकादशाी तक विशाल मेले का आयोजन होता
है। यह सम्प्रदायिक सद्भावना की दृष्टि से राज्य का सबसे बड़ा मेला है। हरजी भाटी बाबा
रामदेव जी के परम भक्त थे।
2-गोगाजी
गोगाजी/जाहर वीर सर्पो के देवता गोगा जी महाराज का जन्म चुरू जिले के
ददरेवा गांव में भाद्रपक्ष कृष्ण पक्ष नवमी(गोगा नवमी) को 10वीं शताब्दी में चौहान
वंशीय परिवार में हुआ था। गोगा जी के पिता का नाम जेवर सिंह चौहान व माता का नाम बाछल
था तथा इनके दादा का नाम उमरसिंह चौहान था। पांच पीरों में गोगाजी को पूजते है इसलिए
मुस्लिम लोग गोगापीर कहते है। गोगा जी के मंदिर को मेड़ी कहते है। गोगाजी का प्रमुख
मेला हनुमानगढ जिले की नोहर तहसील में स्थित गोगामेडी में भाद्रपक्ष कृष्ण नवमी को
मेला भरता है। इसे धुनी मेड़ी भी कहते है क्योंकि यहां धड़ की पूजा होती है। गोगाजी
के जन्म स्थान ददरेवा(चुरू) में शीशमेड़ी/सिद्ध मेड़ी है यहां पर शीश की पूजा होती
है। ददरेवा चुरू में गोगाजी महमूद गजनवी के साथ गायों की रक्षा के लिए युद्ध करते हुए
वीर गति को प्राप्त हो गए। गोगाजी की पूजा खेजडी के वृक्ष के नीचे होती है। इनके गुरु
का नाम गोरनाथ था। गोगाजी की पत्नी का नाम कैलमदे था जो जोधपुर कोलमंड की राजकुमारी
थी। गोगानवमी से पहले जो मानसून की वर्षा होती है, तब किसान हल जोतते है, इस दौरान नौ गांठो वाली राखड़ी हल व हाली को बांधी
जाती है। जिससे गोगा राखड़ी कहते है। गोगा जी भक्त लोहे की जंजीरो/छड़ी से अपने सिर
पर प्रहार करते तथा डेरू वादृय यंत्र बजातें ओर गुणगान करते है। कुंवर केसरिया
जी गोगाजी के ज्येश्ठ पुत्र थे इनका भव्य मंदिर हनुमानगढ जिले के बरमसर गांव में स्थित
है।
3-पाबूजी
पाबूजी राठौड का जन्म 1239 ई0 में फलौदी जोधपुर में हुआ था। पाबूजी के
पिता का नाम धांधल जी राठौड व माता कमला दे थी। पाबूजी की पत्नी का नाम सुप्यार दे/फूलमेव
दे था। पाबुजी के अनुयायी 3.5 फैरे लेते है। पाबूजी ऊॅटों के देवता माने जाते है। पंच पीरो में पाबूजी
का प्रमुख स्थान माना जाता है। ऊँट पालन रैबारी जाति के लोट पाबूजी को अराध्य देव मानते
है। पाबूजी के पावडे़ प्रचलित है जो माठ वादृय यंत्र के साथ गाते है। पश्चिम से मारवाड़
में ऊॅट लाने का श्रेष्य पाबूजी को दिया जाता है। पाबूजी फड़ का वाचन–भोपा–भोपी करते
है। तथा रावण हत्था वादृय यंत्र बजाया जाता है तथा थाली नृत्य भी करते है। पाबूजी भोपों
के अराध्य देव है। पाबूजी के गुरु का नाम बालीनाथ था। पाबूजी की घोड़ी का नाम केसर
कालमी था जो पाबूजी ने देवल चारण से उसकी रक्षा का वचन देकर ली थी। इसी केसर कालमी
घोड़ी को जायल नरेश जींदराव खींची ने चारणी से मांगा था। लेकिन चारणी ने घोड़ी नहीं
दी थी। तथा पाबूजी को घोड़ी दे दी थी। इसी बात से नाराज होकर तथा पाबूजी की शादी का
फायदा उठाकर जींदराव खींची देवल चारणी की गायों का अपहरण कर ले गया इस बात का पता बीच
फेरों में पाबूजी को चल गया तथा फेरों को बीच में छोड़कर चारणी की गायों को छुड़ाने
आ गये तथा जींदराव खींची के साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। यह युद्ध देंचू
गांव जो जोधपुर में स्थित है वहाँ पर हुआ था। पाबूजी का मेला चैत्र अमावस्या को कोलमंड
जोधपुर में भरता है। चांदा, डेरा
व हरमल पाबूजी के सहयोगी थे। मेहर जाति के मुस्लिम पाबूजी को पीर मानकर पूजते है।
4-मांगलिया मेहाजी
मेहाजी पांच पीरो में से एक पीर थे। इनके पिता का नाम गोपाल राज सांखला
था। मांगलिया मेहाजी कामडि़या पंथ से दीक्षित थे जो बाबा रामदेव जी ने चलाया था। मेहाजी
का मैला कृष्ण जन्माष्टमी को वापिणी जोधपुर में भरता है। मांगलिया मेहाजी के प्रिय
घोड़े का नाम किरड़ काबरा था। मेहाजी को मानने वाले भोपा जाति के लोगों का वंश आगे
नहीं बढता है, बल्कि दूसरों की संतान गोद लेकर वंश चलाते है। मेहाजी
जैसलमेर के भाटी राजा राणगदेव से युद्ध करते हुऐ वीरगति को प्राप्त हुऐ। मांगलिया मेहाजी
मारवाड़ शासक राव जोधा के समकालीन थे।
5- हड़बूजी –
पंच
पीरो में हड़बूजी का भी नाम सम्मान से लिया जाता है। इनका जन्म भूडेल (नागौर) में हुआ
था। इनके पिता का नाम मेहाजी सांखला तथा गुरु का नाम योगी बालीनाथ था। हड़बु जी की
कर्मभूमि बंगटी गांव फलौदी है, यहां
पर हड़बुजी बीमार गायों की सेवा करते थे। हड़बूजी की कोई मुर्ति नहीं होती है, बल्कि बैलगाडी की पूजा की जाती है। इनको गाडीवाले
देवता भी कहते है। इनका वाहन सियार है। इनका पूजा स्थल बंगटी गांव फलौदी में ही है।
हड़बूजी मारवाड़ शासक राव जोधा के समकालीन थे। हड़बुजी शकुन शस्त्र के ज्ञाता थे। इसके
प्रमुख पुजारी सांखला राजपूत होते है।
6-तेजा जी
तेजा जी का जन्म नागौर जिले के खरनाल गांव में माघ शुक्ल चर्तुदशी 1073
ई0 को धोल्या गौत्र ताहड़ जी जाट के घर हुआ था। इनकी माता जी का नाम राजकुंवर था। लोक
मान्यताओं के अनुसार तेजाजी की शादी बचपन में ही पनेर(अजमेर) में रामचन्द्र की बेटी
पेमल से कर दी गई थी। तेजा जी की घोड़ी का नाम लीलण/सिणगारी था। एक बार तेजाजी पनेर
अजमेर अपने ससुराल गये थे, वहां
पेमल की सहेली लाछा गुजरी की गाय मेर के मीणा ले गये। उन मीणाओं से गायों को छुटाने
के लिए तेजाजी गये, जब गायों
को छुड़ाकर वापस आ रहे थे, तो सेंदरिया(अजमेर)
नामक स्थान पर तेजाजी को सर्प ने डस लिया लेकिन तेजाजी का देहान्त 1103 ई0 भादवा सुदी
दशमी को अजमेर के सुरसुरा नामक स्थान पर हो गया। तेजाजी की मृत्यु का समाचार घर पर
लीलण घोड़ी ने दिया था। काला व बाला के देवता तेजाजी कहलाते है। राजस्थान में परबतसर
नागौर में पशु मेला प्रसिद्ध है, जो कि
भाद्रपक्ष शुक्ल दशमी से पूर्णिमा तक लगता है। आर्थिक दृष्टि से यह राज्य का सबसे बड़ा
मेला है। तेजाजी के पूजारी घोड़ला कहलाते है। अजमेर जिले के प्रत्येक गांव में तेजाजी
का चबूतरा है जिससे थान कहते है। इनके जीवन से सम्बधित साहित्य को तेजा टेर कहते है।
किसान जमीन बुआई के समय गाते है। तेजा जी का मुख्य मंदिर खरनाल नागौर में है। सर्प
देवता ने तेजाजी की जीभ को डसा था। तेजाजी का प्रतीक अश्वारोही भाला माना जाता है।
7-देवनारायण जी
देवनारायण जी का जन्म गोठ, दड़ावत
आसींद भीलवाड़ा में 1243 ई0 में गुर्जर बगड़ावत परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम
सवाई भोज तथा माता का नाम सेडू खटाणी था। देवनारायण जी आयुर्वेद के ज्ञाता थे। इन्होने
मध्यप्रदेश के राजा जयसिंह की पुत्री पीपलवे को अपने आयुर्वेद ज्ञान से स्वस्थ्य किया
तथा शादी कर ली थी। देवनारायण जी गुर्जर समाज का लोकदेवता विष्णु का अवतार उदल जी आदि
उपनामो से जाने जाते है। इनके पूजा स्थल को देवरा कहते है। मूर्ति के स्थान पर ईंट
की पूजा होती है। देवनारायण जी की फड़ सबसे प्राचीन है तथा वाचन के आधार पर सबसे लम्बी
फड़ भी देवनारायण जी की है। इनकी फड़ का वाचन अविवाहित भोपों द्वारा किया जाता है तथा
जन्तर वाद्य यंत्र बजाया जाता है। देवनारायण जी ने अजमेर शासक दुर्जनलाल को मारकर अपने
पिता सवाई भोज का बदला लिया था। गुर्जर जाति के लोग देवनारायण जी को अपना अराध्य देव
मानते है। इनके घोड़े का नाम लीलागर था।
8-बाबा तल्लीनाथ जी-
बाबा तल्लीनाथ की वास्तविक नाम गागदेव राठौड था। इनका जन्म स्थान शेरगढ़
(जोधपर) था। इनके पिता का नाम वीरमदेव राठौड तथा गुरु का नाम जालधर नाथ था। बाबा तल्लीनाथ
जी जालौर में पंचमुख पहाड़ी पांचोटा गांव में पूजा अर्चना करते थे। प्रकृति प्रेमी
बाबा तल्लीनाथ जी को जालौर में ओरण रूप में पूजते है। ये यहां के लोकप्रिय देवता है।
9-देव बाबा
पशु शास्त्र के ज्ञाता व ग्वालों के देवता देव बाबा है। देव बाबा का वाहन
भैंसा है। इनका प्रमुख मंदिर नगला जहाज भरतपुर में है। यहां वर्ष में दो बार भाद्रपद
शुक्ल पंचमी तथा चैत्र शुक्ल पंचमी को मेला भरता है। देव बाबा ने अपनी देह त्याग के
बाद भी अपनी बहिन ऐलादी का भात भरा था। देव बाबा का मंदिर नीम के वृक्ष के नीचे होता
है।
10-मल्लीनाथ जी-
मल्लीनाथ जी का जन्म तिलवाड़ा(बाडमेंर) में सन् 1358 ई0 में हुआ था। इनके
पिता का नाम राव तीड़ा तथा माता का नाम जीणादे था। मल्लीनाथ के दो पत्नीया थी, रूपादे
तथा चन्द्रावल। मल्लीनाथ जी के गुरु का नाम उग्गम सिंह भाटी था। मल्लीनाथ जी ने निर्गुण
भक्ति पर बल दिया था तथा 1399 ई0 में कुड़ा पंथ की स्थापना की थी। राजस्थान का सबसे
प्रसिद्ध प्राचीन पशु मेला मल्लीनाथ जी का है। मल्लीनाथ जी की पत्नी रूपादे का मंदिर
माला जाल गांव तिलवाड़ा बाडमेर में स्थित है।
11-मामा देव-
मामा देव को बरसात का देवता मानते है। मामा देव की पूजा गांव के बाहर
लकड़ी के रूप में करते है, जिस तोरण कहते है। मामा देव को खुश करने के लिए भैंस
की बलि दी जाती है। राजस्थान में मामा देव का स्यालोदड़ा सीकर में भव्य मंदिर है। यहां
रामनवमी को विशाल मेला लगता है।
12-वीर कल्ला जी राठौड-
इनका जन्म 1544 ई0 में सामियाना नागौर में हुआ था। इनके पिता का नाम आससिंह/अचल
सिंह राठौड़ था। जो मेड़ता परगने के शासक थे। कल्ला राठौड़ की पत्नी का नाम कृष्णा
था। वीर कल्ला जी की कुल देवी नागणेची माता थी। इनके गुरु का नाम भैरवनाथ था। 1567-68
ई0 में अकबर के आक्रमण के समय मेवाड़ की रक्षा के लिए कल्ला जी राठौड़ मेवाड़ी राजपूतों
का सहयोग कर रहे थे। युद्ध में उदयसिंह के सेनापति जयमल राठौड़ घायल हो गये तो जयमल
राठौड़ को कल्लाजी ने अपने कंधे पर बैठाकर युद्ध किया। यह दृश्य जब मुगल शासक अकबर
ने देखा तो उन्होने कल्ला जी को चार हाथों वाला देवता कहा। इस युद्ध में कल्ला राठौड़
महाराणा उदय सिंह के सेनापति जयमल राठौड़ व फत्ता सिसोदिया के साथ वीरगति को प्राप्त
हो गये। कल्ला जी की छतरी चितौड़ में है। डुंगरपुर जिले के सामलिया गांव में कल्लाजी
राठौड़ की काले पत्थर की मुर्ति है। जिस पर अफीम व केसर चढाई जाती है। कल्ला राठौड
का मेला इनके स्थलों पर आश्विन माह में शुक्ल पक्ष की नवमी को भरता है।
13-वीर बिग्गा जी-
वीर बिग्गा जी का जन्म बीकानेर के रीड़ी गांव में जाट समाज में हुआ था।
इनके पिता का नाम राव मोहन व माता का नाम सुल्तानी था। वीर बिग्गा जी जाखड़ समाज के
अराध्य देवता है। वीर बिग्गा जी गायों की रक्षा के लिए मुस्लिम समाज से लड़ते हुए वीर
गति को प्राप्त हो गये थे।
14-गोतमेश्वर महादेव/भूरिया बाबा-
ये मीणा समाज के अराध्य देव माने जाते है। मीणा जाति के लोग भूरिया बाबा
की झुठी कसम नहीं खाते है। गोतेश्वर महादेव के मेले में वर्दीधारी पुलिसकर्मी नहीं
जाते है। इसका प्रमुख मंदिर आरणोद प्रतापगढ़ में स्थित है।
15-हरीराम जी-
हरीराम जी का जन्म वि0स0 1959 को झोरड़ा गांव नागौर में हुआ था। इनके
पिता का नाम रामनारायण जी तथा माता का नाम चनणीदेवी था। हरीराम जी हनुमान जी के भक्त
थे, इनके गुरु भूराराम
जी थे। हरीराम जी जाति पाति, छुआ-छूत
के विरोधी थे। झौरड़ा गांव नागौर में चैत्र शुक्ल चतुर्थी तथा भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी
को मेला लगता है।
16-झरड़ा जी-
इनके पिता का नाम बूढ़ो जी राठौड़ था। झरड़ा जी ने जींदराव खींची को मारकर
पाबूजी की हत्या का बदला लिया था। झरड़ा नाथ सम्प्रदाय को मानते थे। इसलिए इन्हे रूपनाथ
या बालकनाथ भी कहते है। झरड़ा जी के मंदिर को थान कहते है। इनकी पूजा कोलमुण्ड (जोधपुर)
सिभूंदडा बीकानेर में होती है।
17-इलोजी-
इलोजी को छेड़-छाड़ का देवता मानते है। इलोजी होलिका के प्रेमी थे लेकिन
शादी से एक दिन पहले जलकर मर गई थी। इलोजी ने अन्य शादी नहीं करवाई थी। इलोजी की पूजा
नौजवान लड़के-लड़कियॉ अच्छे जीवन साथी के लिए करते है। इलोजी की मूर्ति नग्न अवस्था
में आदमकद होती है। तथा महिलाऐ पुत्र प्राप्ति के लिए भी इलोजी की पूजा करती है। इलोजी
की पूजा मुख्य रूप से मारवाड़ क्षेत्र में होती है।
18-भोमिया जी-
भोमिया जी को भूमि रक्षक देवता माना जाता है। इन्हे कांकड़ का देवता भी
कहते है। हिन्दू धर्म में विवाह के बाद बारात वापस गांव में लौटती है तो वर-वधु गांव
की कांकड़ पर भुमिया जी का पूजन करते है। जयपुर के नाहर सिंह जी भोमिया व दौसा के सूरजमल
भोमिया राज्य में प्रमुख रूप से पूजे जाते है।
19-खेत्रपाल/क्षेत्रपाल जी-
खेत्रपाल जी को क्षेत्र रक्षक देवता मानते है। इनके मंदिर में नवदम्पति
को धोक लगवाई जाती है तथा बच्चों का झडूला उतारा जाता है। (झडूला का मतलब- बच्चे के
जन्म के बाद उसके सर के बाल सर्वप्रथम यहां काटकर चढाना) क्षेत्रपाल जी के सर्वाधिक
मंदिर डूंगरपुर जिले में है। इनका प्रसिद्ध मंदिर सोनाणा गांव पाली में है। खेत्रपाल
जी के प्रसाद को खेतला कहते है।
20-वीर फत्ता जी-
फत्ता जी का जन्म जालौर जिले में साधु गांव के गज्जारणी परिवार में हुआ।
वीर फत्ता जी शस्त्र विद्या में निपुण थे। फत्ता जी का मेला साधु गांव जालौर में भाद्रपद
शुक्ल नवमी को भरता है।
21-भाखर बावजी- ये सांसियो के लोग देवता माने जाते है।
22-बाबा झुझार जी-
इनका जन्म इग्लोहा गांव सीकर में हुआ था। बाबा झुझार जी बारात की रक्षा
के लिए वीरगति को प्राप्त हो गये थे। बाबा झुझार जी का पूजा स्थल स्थालाबड़ा सीकर में
है। यहां प्रतिवर्ष खेजड़ी वृक्ष के नीचे रामनवमी को मेला भरता है।
23-वीर बावसी-
वीर बावसी आदिवासी समाज के प्रमुख लोक देवता है। इनका मंदिर अरावली की
संघन पहाड़ियों के मध्य बना हुआ है। जिसे काला टोकरा कहते है। चेत्र शुक्ल पंचमी को
वीर बावसी का मेला भरता है।
24-पनराज जी- इनका प्रमुख मंदिर पनराजसर जैसलमेर में स्थित है।
25-आलम जी राठौड़-
इनका वास्तविक नाम जैतमलोत राठौड़ था। इनका पूजा स्थल बाड़मेर में है।
जिसे आलम जी का धोरा कहते है।