जीवन में अर्जित सम्पत्ति का सदुपयोग कैसे करें।

आज के युग में हर कोई अपने लिए हर प्रकार की धन संपत्ति जुटाने में लगा हुआ है। परन्तु उसका सदुपयोग कोई करना ही नही जानता है। सब कमाने में तो इस तरह जुटे हुए हैं कि सब कुछ साथ ही लेकर जायेंगे। अगर साथ नहीं ले जा पाएं तो क्या हुआ ? अपने पुत्र ओर पोत्रो के लिए तो काम आयेगी। इसी सोच के साथ हर इंसान बहुत सारी सम्पत्ति कमानें में ही अपनी जिंदगी गुजार देता है। इस धरती पर एकमात्र ऐसा प्राणी इंसान ही है जो ये सोच रखता है। बाकि किसी जीव जंतु में ये सोच नहीं होती है। इंसान पृथ्वी का सबसे बुद्धि जीव है। जो बहुत लम्बी आगे तक की सोच लेता हैं। उसे यह भी मालूम होना चाहिए की जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है। पता नहीं कब प्राण पखेरू उड़ जाएं। सब कुछ यहीं का यही धरा रह जायेगा। इसलिए अपनी जिंदगी में पुरुषार्थ से कमाईं हुईं सम्पत्ति का सदुपयोग करना सीखें।


संसार में अनेक प्रकार की संपत्तियां हैं। रोटी कपड़ा मकान सोना चांदी रुपया पैसा बैंक बैलेंस इत्यादि। यह संपत्ति कमानी भी चाहिए और इसका सदुपयोग अर्थात उचित कार्यों में खर्च भी करना चाहिए।

          धन संपत्ति कमाकर केवल अपने लिए ही खर्च करना कोई अच्छी बात नही है। उसमें से कुछ हिस्सा दूसरों के लिए भी खर्च करना चाहिए। जो आपनें आज तक जितनी भी संमत्ति अर्जित की है वो आपने अकेले ने नही कमाई। इसमे भी बहुत से लोगों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग रहा है। देश मे लाखों करोड़ो लोगों के आपसी सहयोग से ही धन संपत्ति कमाई की जाती है। देश के लाखों करोड़ो लोग आपके लिए सड़क बिजली पानी ट्रेन रेडियों टेलीविजन मोबाईल कम्प्यूटर वगैरा बहुत सी वस्तुएं बनाते है। उन सबका लाखों करोड़ो का बिजनेस होता है। उन्ही सब लोगों के सहयोग से ही आप द्वारा कुछ धन संमत्ति अर्जित कर पाते है। उनके सहयोग के बिना आप इतनी संमत्ति अकेले कभी भी प्राप्त नही कर सकते। इसलिए देश के लोगों का भी आपकी संपत्ति मे कुछ हिस्सा अवश्य होता है। इसी कारण से आपके द्वारा अर्जित की गई धन संपत्ति मे से कुछ हिस्सा दूसरों के लिए भी खर्च करना चाहिए। अर्थात उत्तम योग्य पात्रों को ही दान कर देना चाहिए। 

            जो दान आप उत्तम योग्य परोपकारी लोगों को दे। अथवा रोगी विकलांग कमजोर व्यक्तियों को तथा पशु पक्षियों की रक्षा के लिए दें। वही आप की सबसे उत्तम संपत्ति है। क्योंकि दान देने से एक तो आपको वर्तमान जीवन में आंतरिक आनंद मिलेगा वहीं दूसरा लाभ यह है कि यह दान में दी हुई संपत्ति पुनर्जन्म में भी आपके साथ जाएगी। इसका कई गुना फल आपको अगले जन्म में भी मिलेगा। जैसे किसान एक बोरी बीज खेत में डालता है। और उसे कई बोरी अनाज फसल के रूप में वापस मिलता है। इस सोच के साथ दान मे दिया गया धन संमत्ति सबसे उत्तम है।

बहुत से लोग मंंहगें सोने चांदी तथा अन्य धातुओं से निर्मित कई तरह के आभूषण पहनते हैं। इन आभूषणों के पहनने से अपनी बाह्य सुंदरता बढ़ाते है। वो बाह्य सुंदरता भी अच्छी है। इसके लिए आप भी सोने चांदी के आभूषण धारण करो। इसमे कोई आपत्ति नही है। परन्तु सबसे उत्तम अभूषण तो आपका स्वभाव है। आप अपने जीवन मे सोना चांदी के आभूषण धारण करें या ना करें। परन्तु सबसे उत्तम स्वभाव रूपी आभूषण तो अवश्य धारण करें। क्योकि ये जीवन का सबसे उत्तम आभूषण है जो आपको ओर सबको हर प्रकार की खुशी हमेशा देता रहेगा।

कुछ शारीरिक रोग होते हैं। जैसे खांसी जुकाम टी बी कैंसर इत्यादि। तथा कुछ मानसिक रोग भी होते हैं। जैसे काम क्रोध लोभ ईर्ष्या द्वेष अभिमान इत्यादि। इन रोगों मे कोई भी रोग कम नही है। सब एक से एक बढकर खतरनाक है। लेकिन से खतरनाक रोग है तो वह रोग है क्रोध करने का रोग। क्रोध की स्थिति मे इंसान पागल हो जाता है। जिसकी वजह से न जाने क्या-क्या मूर्खताएं कर बैठता है। क्रोध शांंत होने पर वह पश्चाताप भी करता है। पश्चाताप करने से पहले बहुत कुछ विनाश हो चुका होता है। उसके बाद पश्चाताप करने से क्या फायदा ? अब कुछ भी नही हो सकता।

         हर व्यक्ति अपने जीवन में जो कुछ भी करता है। वह सुख पाने के लिए करता है। अच्छे से अच्छा सुख पाना चाहता है। उसी के लिए वह भाग दौड़ करता रहता है। यह बात बिल्कुल सत्य है कि भौतिक वस्तुएं प्राप्त करने से हमे सुख मिलता है। इसमें कोई संदेह नहीं है। इसीलिए लोग भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। जिनमे से अधिकांश लोग इस बात को नही जानते कि सबसे उत्तम सुख तो संतोष का पालन करने से ही मिलता है। सन्तोष का अर्थ यह कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पुरूषार्थ करें। जिससे जितना फल मिले उतने मे ही प्रसन्न रहें। कभी भी अपने आप या दुसरे से शिकायत ना करे कि मैने बहुत मेहनत की फिर भी मुझे कुछ नही मिला या बहुत कम मिला है। यदि आप ऐसी शिकायत करते है तो आपके द्वारा अर्जित धन संंपत्ति से प्राप्त भौतिक वस्तुएं से जितना सुख मिला है वह भी खो दोगे। संतोष का तात्पर्य यह कि जितना मिला उसी को देखें और खुशी मनाएं। जो नही मिला उसको भूल जाएं। उस पर कभी ध्यान ना दे तो बेहतर रहेगा।

         यदि आप इतना कर लेंगे तो आप थोड़ा धन संपत्ति प्राप्त करके भी बहुत सुखी हो सकते हैं। ओर अपने जीवन को आनन्दमयी रूप से व्यतित कर सकते हो।

       सदैव खुश रहे मस्त रहे। इस आशा के साथ फिर मिलेंगे एक नई सोच के साथ।

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